एक दुःखी व्यक्ति अपने हालात से दुखी होकर एक संत के पास आया और बोला की मेरी जीवन जीने की इच्छा समाप्त हो चुकी है।
मुझे बताएं की मैं क्या करूं?
संत बोले किससे दुखी हो। वह बोला, “अपने परिवार के झगड़ों से और अपने कारोबार से।
संत बोले, “तुम्हे भगवान् ने रोटी,कपडा और मकान जबसे तुम पैदा हुए तबसे तुम्हें इसका सुख दिया है।
जीवन में उतार चढ़ाव, यह तो प्रकृति का नियम है।
राम को 14 साल का वनवास ,
तारा रानी की कठिन परीक्षा,
प्रह्लाद का होलिका दहन और पिता द्वारा यातनाये।
गुरु नानक देव,साईं बाबा और भगवान् महावीर जैन, न जाने ऐसे कितने ही लोगों ने अपने जीवन में संघर्ष किया।
परंतु विजय उसी की हुई जिसने वक्त को स्वीकार किया, अपने भूत से कुछ सीखा और भविष्य की चिंता न कर वर्तमान में जीना सीखा।
हर क्षण इंसान का अंतिम क्षण होता है।
इसलिए रोने की बजाये धन्यवाद करना सीखो
श्वांसो की क़ीमत तब तक कोई नहीं जानता जब तक ये रुकने न लगें हमारे अंदर जो साँस चल रही है वो ईश्वर की सबसे बड़ी कृपा है हम पर आज आपने कितनी साँसे ली कभी आपने इसे अहसास किया है
आप अपनी हर बहुमूल्य वस्तु का ध्यान रखते हो मगर कभी इस बहुमूल्य वस्तु की तरफ़ सोंचकर उस परमात्मा का धन्यवाद किया है जिसकी वजह से हमारा अस्तित्व है
अच्छा, साँसों का भी एक अटल क़ानून है वैसे तो ये आती जाती रहती हैं परंतु जब ये अंतिम रूप से चली जाती है तो लौट के नहीं आती संसार की कोई ताक़त कोई सिफ़ारिश उसे वापस बुला नहीं सकती ना तो आप इसका आदान प्रदान कर सकते हो जिस दिन यह समाप्त हम आप भी समाप्त
जिस अनमोल ख़ज़ाने के साथ हमारा जन्म हुआ जो ख़ज़ाना हमें ईश्वर ने दिया हम उसका धन्यवाद ना करके उस ख़ज़ाने की कद्र किए बिना दुनिया की सारी बातों का ध्यान रखते है परंतु न तो इस ख़ज़ाने का ना ही इसे देने वाले का कभी भी ध्यान देते है न ही धन्यवाद करते है
जिस दिन इन श्वांसो का आना जाना बंद हो जाएगा सारे रिश्ते नाते मान सम्मान धन वैभव समाप्त हो जाएगा इस लिए इस बहुमूल्य खजाने की कद्र करें और उसे देने वाले का स्वाँस स्वाँस धन्यवाद करें
मैं तो केवल मार्ग बता सकता हूँ, चलना तुम्हे स्वयं ही पड़ेगा।
सृष्टि कर्म के आधार से चल रही है। भाग्य, सुख और दुःख कर्म के आधार से ही बनते हैं।
दुआओं से भाग्य जमा होता है, सुख देने से सुख मिलता है,क्रोध करने से दुःख मिलता है। युक्ति युक्त बोल और मौन रहने से सकून मिलता है।
अब भाग्य की कलम तुम्हारे हाथ में है जैसा लिखना चाहो वैसा लिख लो।
वह दुखी व्यक्ति गुरु का ज्ञान सुनने के बाद बोला,” गुरूजी, मैं यह सब जानते हुए भी अपने मार्ग से भटक गया था।
मार्ग दर्शन के लिए सबसे पहले आपका , फिर प्रभु का धन्यवाद।