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देना ही लेना है

by Admin
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एक बार गुरूजी सत्संग कर रहे थे।

उन्होंने दृष्टान्त देते हुए कहा कि जन्म से मृत्यू लगभग 70 वर्ष तक हम यह खेल खेल रहे हैं ।

उन्होंने एक कहानी सुनाई:-

,”एक छोटा भाई और एक बड़ी बहिन सांप सीडी का खेल, खेल रहे थे ।

सांप से नीचे और सीडी से ऊपर।

छोटा भाई हारने के बाद रोता था।

बड़ी बहिन हारने के बाद भी हंसती थी।

समझने की बात है कि जीवन में जो परिस्तिथिया मेरे नियंत्रण में नहीं होती है उन्हें ख़ुशी से स्वीकार करने की ताकत नहीं हो तो दुखी होकर स्वीकार करना होता है।

परंतु स्वीकार तो करना पड़ेगा।

सांप सीडी के इस खेल में आप केवल dice फ़ेंक सकते हो।

प्रश्न यह उठता है कि स्वीकार करने की ताकत कहाँ से आए।

मन बुद्धि और संस्कार पर विजय प्राप्त करने से यह ताकत आयेगी।

अर्थात जाप और ध्यान से।

इसलिए गुरूजी कहते हैं कि में तो

केवल मार्ग बता सकता हूँ, चलना तुम्हे स्वयं ही पड़ेगा।

सृष्टि कर्म के आधार से चल रही है। भाग्य, सुख और दुःख कर्म के आधार से ही बनते हैं।

दुआओं से भाग्य जमा होता है, सुख देने से सुख मिलता है,

क्रोध करने से दुःख मिलता है। युक्ति युक्त बोल और मौन रहने से सकून मिलता है।

अब भाग्य की कलम तुम्हारे हाथ में है जैसा लिखना चाहो वैसा लिख लो।

अब गुरुजी सत्संग के बाद एक कतार में खड़े लोगों को प्रसाद बाँट रहे थे। एक छोटा लड़का गुरुजी तक भाग के गया और गुरुजी ने वह छोटे लड़के को प्रसाद दिया … लड़का प्रसाद लेकर भाग गया …

और फिर गुरुजी के पास गया और गुरुजीने उसे प्रसाद फिर से दिया … पूर्ण उत्साह के साथ, लड़का वापस गुरुजी के पास गया, फिर से, और गुरुजी ने वापस उसे प्रसाद दिया  …

यह कुछ समय के लिए जारी रहा … एक स्वयंसेवक जो यह सब देख रहा था वह उलझन में था।

उसने गुरुजी से पूछा, क्यों वह उस छोटे से लड़के को बाँरबाँर  प्रसाद दे रहे है, जबकि दूसरे लोग प्रसाद पाने के लिए कतार में इंतजार कर रहे हैं???? …

गुरूजी मुस्कराए और बोले, “तुमने देखा “वो मुझसे प्रसाद लेकर जा रहा है”, पर मैने ये भी देखा कि वो मैंने जो प्रसाद दिया वह उसे पीछे जाकर बाँट रहा है  …

जब तक वो देता रहेगा, तब तक मैं भी देता रहुँगा !!!

शिक्षा :- देना ही लेना है। दूसरो के साथ ख़ुशी बाँटने से ख़ुशी बढ़ती है। इसलिए देना सीखे फिर जो चाहिए वह अपने आप चल कर आएगा।

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