Home » नाम से बड़ा कर्म

नाम से बड़ा कर्म

by Admin
0 comments

प्राचीन काल में तक्षशिला के महाविद्यालय में पापक नामक विद्यार्थी पढ़ता था। उसके मित्र उसे पापक नाम से पुकारते थे। पापक प्रतिदिन अपना अशुभ नाम सुनकर लज्जित होता था। एक बार उसने आचार्य को कहा, “भगवन्! पापक नाम से मेरा गौरव नष्ट होता है, आपने मेरा अच्छा नाम क्यों नहीं रक्खा ?” आचार्य ने कहा, “पापक के स्थान पर तेरा दूसरा नाम रखूँगा, किन्तु इससे पहले तू गाँवों में जाकर तेरे लिए अच्छे नाम की खोज कर।”

यह पापक घूमता हुआ गाँव में पहुँचा। वहाँ कुछ लोग मुर्दे को जलाने के लिए श्मशान जा रहे थे। पापक ने पूछा, “अरे भाई, किसकी मृत्यु हो गई?” एक व्यक्ति ने कहा, “इस गाँव का अमरपाल मर गया है।” पापक चकित होकर विचार करने लगा-नाम से अमरपाल होकर भी यह आदमी कैसे मर गया ? वहाँ के एक व्यक्ति ने कहा, नाम से क्या होता है? इस संसार में कोई अजर अमर नहीं है। तदनन्तर वह सार्थक नाम ढूँढने के लिए आगे चल पड़ा। उसने देखा, सिर पर बोझ रखे कोई स्त्री आ रही है। उसका नाम धनपाली था। उसने उसका काम पूछा, उस स्त्री ने कहा, “नौकरी करती हूं।” “आप धनपाली होकर भी निर्धन है?” स्त्री ने कहा, “नाम से क्या होता है, संसार कर्म प्रधान है।”

पापक निराश होकर दूसरे गाँव में गया, वहाँ उसने देखा कि सिपाही चोर को पकड़ कर ला रहे थे। चोर का नाम धर्मपाल था। एक भिक्षुक भिक्षा माँग रहा है, उसका नाम लखपति है, मूर्ख का नाम विद्याधर है, नंगे साधु का नाम पीताम्बरदास है। दूसरे गाँव में जाकर उसने देखा कि एक आदमी खाट में पड़ा अपने शरीर को खुजला रहा था, उसका नाम निर्मलदास था।

इस प्रकार घूमते हुए उसने अनुभव किया कि नाम से किसी की महिमा नहीं बढ़ती है। उसने लौटकर आचार्य को कहा, “भगवन् ! मैं बहुत जगह गया, लेकिन कहीं भी उपयुक्त नाम नहीं मिला। ‘नाम से किसी का गौरव बढ़ता हुआ नहीं देखा। अमरपाल भी मर गया, धनपाल माँगता है, धर्मपाल चोर है, विद्याधर मूर्ख है, नग्न व्यक्ति पीताम्बरदास है और रोगी निर्मलदास है।”

यह सोचकर कि नाम से किसी को गौरव नहीं मिलता, वास्तव में गुणों से, चरित्र से, मानव को गौरव प्राप्त होता है। आचार्य ने कहा, “अच्छा पुत्र ! यह जानने के लिए ही मैंने तुम्हें भेजा था, मानव नाम से नहीं, कर्म से सिद्धि प्राप्त करता है। संसार में जो चरित्रवान् और कर्म वाले हैं लोग उनकी प्रशंसा करते हैं।” नाम भले ही श्रेष्ठ नहीं हो जो अच्छा कर्म करता है वह प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। यह सोचकर, प्रसन्न होकर पापक ने गृहस्थधर्म में प्रवेश किया।

You may also like

Leave a Comment