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दो फकीरों की कहानी

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दो फकीर थे। वह दोनों वर्षा काल के लिए अपने झोपड़े पर वापस लौट रहे थे। आठ महीने घुमते थे, भटकते थे, गांव-गांव, उस परमात्मा का गीत गाते थे। वर्षा काल में अपने झोपड़े पर लौट आते थे। गुरू बूढ़ा था शिष्य जवान था। जैसे ही वे करीब पहुंचे झील के किनारे अपने झोपड़े को देखा- छप्पर जमीन पर पड़ा है। जोर की आंधी आयी थी रात, आधा छप्पर उड़ गया है। छोटा-सा झोपड़ा।

उसका भी आधा छप्पर उड़ गया है। वर्षा सिर पर है। अब कुछ करना भी मुश्किल होगा। दूर जंगल में यह निवास है।

युवा सन्यासी शिष्य ने कहा, देखो, हम प्रार्थना कर-कर के मरे जाते हैं, हम उसकी याद कर-कर के मरे जाते हैं, उसकी तरफ से यह फल। इसलिए तो मैं कहता हूं कि कुछ सार नहीं है भक्ति में। प्रार्थना, पूजा- मिलता क्या हैं? दुष्टों के महल साबित हैं, हम गरीब फकीरों की झोपड़ी गिर गयी आधी। और यह आंधी भी तो उसी की है।

जब वह क्रोध से यह बातें कर रहा था तो, उसने देखा कि उसका गुरू घुटने टेक कर, बड़े आनंदभाव से आकाश की तरफ हाथ जोड़े बैठा था। उसकी आंखों से परम संतोष के आंसू बह रहे हैं और वह गुनगुना कर कह रहा है, कि परमात्मा तेरी कृपा। आंधी का क्या भरोसा। पूरा छप्पर ले जाती। जरूर तूने बीच में रोका होगा और आधे को बचाया होगा। आधा छप्पर तो अभी भी ऊपर है।

आंधी का क्या भरोसा? आंधी तो आंधी है। पूरा ले जाती। जरूर तूने बाधा डाली होगी और आधा तूने ही बचाया होगा।

फिर वो दोनों एक ही झोपड़े में वे प्रवेश कर रहे हैं, लेकिन दो भिन्न तरह के लोग हैं। एक असंतुष्ट है, एक संतुष्ट है। स्थिति एक ही है,लेकिन दोनों के भाव अलग हैं। इसलिए दोनों अलग अलग झोपड़े में जा रहे हैं। ऊपर से तो दिखाई पड़ता है कि एक ही झोपड़े में जा रहे है।

दोनों रात में सोए। जो असंतुष्ट था वह सो ही न सका। उसने अनेक करवटें बदलीं और बार-बार कहा कि क्या भरोसा, कब वर्षा आ जाए। अभी वर्षा आयी नहीं है लेकिन चिंतित और परेशान है।

उसने कहा नींद नहीं आती। नींद आ कैसे सकती है? यह कोई रहने कह जगह है? और उसका क्रोध….।

लेकिन गुरू रात बड़ी गहरी नींद सोया। जब चार बजे उठा तो उसने एक गीत लिखा। क्योंकि आधे झोपड़े में से चांद दिखायी पड़ रहा था। और उसने लिखा कि

परमात्मा, अगर हमें पहले ये पता होता, तो हम आंधी को भी इतना कष्ट न देते कि आधा झप्पर अलग करे। हम खुद ही अलग कर देते। अब तक हम नासमझी में रहे। सो भी सकते हैं, चांद भी देख सकते हैं। आधा छप्पर दूर जो हो गया। तेरा आकाश इतने निकट और हम उसे छप्पर से रोके रहे। तेरा चांद इतने निकट ,कितनी बार आया और गया, और हम छप्पर से रोके रहे। हमें पता ही न था। तू माफ करना। अन्यथा हम तेरी आंधी को यह कष्ट न देते। हम खुद ही आधा अलग कर देते।

हमे हर हाल मे पॉजिटिव रहना चाहिए तभी हम अपनी व अपने परिवार और समाज की तरक्की व खुशहाली कर सकते है।

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